"One family's tale of a homeland lost... and a homeland found. "यह कहानी है, एक अपारम्परिक यहूदी परिवार की जो अपनी दूरदर्शिता से विश्व युद्ध के पहले जर्मनी छोड़ सकने में सफल हो जाता है. यह परिवार केन्या को अपना घर बनाने की कोशिश करता है. और यहाँ से शुरू होती है एक संवेदनशील फ़िल्म. यह एक बहुभाषीय फ़िल्म हैं और अफ्रीकी, जर्मन, यहूदी जैसे संस्कृति को जीवंत किया है. इस फ़िल्म के ज्यादातर संवाद जर्मन और स्वाहिली में हैं - थोड़ा अंग्रेज़ी भी है. पर सब-टाइटल इतने बखूबी में लिखे हुए हैं कि फ़िल्म कि सार्थकता कम नहीं हो पाती है. इसे २००२ के सर्वश्रेष्ठ विदेशी फ़िल्म का ओस्कर मिला है. पूरी कहानी एक बच्ची के द्वारा बयान कि गई है - पेशे से वकील Walter अपनी पत्नी Jettel और बच्ची Regina के साथ जर्मनी से भाग के केन्या में शरण लेते हैं. वाल्टर एक अंग्रेज़ के फार्म पर काम करने लगता है - जहाँ पानी जैसे मौलिक आवश्यकता की भारी कमी है. आदर्शवादी बाप और बच्ची समय और स्थान से समझौता कर लेते हैं और नई ज़िंदगी को अपना पाते हैं. दोनों स्वाहिली सीखते हैं, स्थानीय संस्कृति और लोगों से सामंजस्य बिठाते हुए ज़िंदगी अपना लेते हैं. माँ अपने पुरानी यादें, छोड हुए घर और वहाँ के लोगों, ऐशोआराम के सोच को नहीं छोड़ पाती है. माँ जर्मनी से जरूरी चीजों की जगह अपने लिए खूबसूरत कपड़े और बर्तन लेके आई हैं और घर पर जर्मनी बोलने पर ही जोर देती है. सबसे आकर्षक जेत्तेल का चरित्र है - जो एक स्वाधीन और परिपक्व सोच बना पाती हैं जीवन और परिवार के बारे में.
इस फ़िल्म में दिल को छू लेने वाले कथानक हैं. ओवुरा - जो पारिवारिक बावर्ची और जेत्तेल का संवाद. १२ सीलिंग कमाना और साहब और मेमसाहब के घर काम करना उससे पारिवारिक इज्ज़त देता है. वही घर से ओवुरा का घर, तीन बीवी और ६ बच्चों से दूर रहना फ़िर भी इज्ज़त पाना और उसकी छोटी जरूरतें झील की मछलियों से पूरा हो जाना. पश्चिम और पूरब के द्वंद को समझाने की कोशिश करता है. वहीं, पति-पत्नी और शादी के कई आयाम को सही सही चित्रित किया है. रेगिना का अपने अंग्रेज़ प्रिंसिपल से बातचीत - जिसमें वो कहती है की वह पढने में इसलिए अच्छा करती है क्यूंकि उसके पिता ६ पौंड की आय में ५ पौंड की फीस देते हैं. यहूदी बच्चों से अंग्रेज़ मिशनरी स्कूल में अलग सा बर्ताव. एक मज़बूत कहानी और पत्रों के साथ यह फ़िल्म प्रवासी परिवारों के दोहरी ज़िंदगी से अलग होने और स्थानीय जीवन को आत्मसात करने की सीख दे जाती है. अन्तिम दृश्य तो बहुत ही खूब है. समूची फ़िल्म, कैमरा और दृश्य १९४० के केन्या के जान पड़ते हैं.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
चलिए देखते हैं.. बेवजह..
Post a Comment