Sunday 26 October 2008

इस दिवाली क्या खरीदें?

बड़ी असमंजस की स्तिथि है कि इस डूबते शेयर बाज़ार, डूबती अर्थवयवस्था से डरे-सहमे आम आदमी ख़रीदे तो क्या ख़रीदे। अपने आज के लिए कुछ करें या अपने कल को सवारने कि फ़िर से कोशिश कि जाए? दिवाली में दोस्तों रिश्तेदारों के लिए १०० रुपये की पेप्सी की दो-लीटर वाली दो बोतल ली जाए या फ़िर IDFC के दो शेयर ले लें। महगाई बढने के साथ ही प्लान बन चुका था - इस बार दो किलो कि जगह एक किलो ही काजू बर्फी लेंगे. काम तो चल ही जाता है. फ़िर, बासी खाने से क्या फायदा । पर, यह कल या आज वाला सवाल मुह बाये फ़िर से खड़ा हो जाता है - एक किलो काजू बर्फी या टेक महिंद्रा का एक शेयर। पटाकों में तो पहले ही आग लगा चुका था। पर, समझ नहीं पड़ रहा था कि दोस्तों को क्या बताउंगा कि हर साल पटके के लिए मारा-मारी करने वाला इस बार शांत क्यों हो गया है। एक आईडिया का बल्ब जला - कल से "सेव अर्थ" का मेंबर हो गया हूँ। अश्वथामा के दर्द में द्रोणाचार्य भी मर जायेंगे और झूठ भी नहीं होगा। क्या आईडिया है सर जी।

विदेशों की तरह, अब देश में भी नौकरियों से खुले दरवाज़े से लोगों निकलना शुरू हो गया है। तो, डर लगना लाजमी हो गया है - ख़ुद तो कम लगता है - सोफ्टवेयर २००१ के हालात एक बार झेलने के बाद। जहाँ ख़ुद की नौकरी तो नहीं गई थी पर कुछ बहुत ही करीबी दोस्तों की नौकरी चली गई थी। इस बार सब ( सारे नाते रिश्तेदारों को, आस-पड़ोस वालों को ) को आर्थिक मंदी की ख़बर ज्यादा मिलने लगी है। इस से मुझे कोई तकलीफ नहीं है की लोगों को मुझसे ज्यादा खबरें मिलती है। २००१ के दौर में ये खबरें भी होती है पर ई-मेल के द्वारा. तकलीफ यह होती है कि मिडिया आज इन्ही ई-मेलों को समाचार बना के दिखा जाता है। मिडिया ने डर के बाज़ार की बिसात बिछा दी है। अब तो आलू टमाटर खरीदने में डर लगने लगा है। कल इनके दाम भी दुगुने हो गए और नौकरी चली गई तब क्या करोगे?