Wednesday 13 February 2008

द मोटरसायकिल डायरिस (Diarios de motocicleta) - एर्नेस्तो से चे गुएवारा बनने की कहानी

द मोटरसायकिल डायरिस (Diarios de motocicleta) - एर्नेस्तो से चे गुएवारा बनने की कहानी
द मोटरसायकिल डायरिस एक सीधी सरल फ़िल्म है - युवा चे के १९५० के दशक में दक्षिणी अमेरिकी देशो की यात्रा पर. इस फ़िल्म के मुख्य किरदार हैं - चिली के पठार, Andes पर्वतमाला, धुंधले होते Amazon के तट. यह चे और उसके दोस्त एर्नेस्तो के डायरी पर आधारित यात्रा वृतांत है. पर सबसे अहम् है वह यात्रा जिसमें एक सरल और शांत युवा दिमाग अपने आस पास की चीजों को देख समझ के प्रौढ हो रहा है.
१९५२ में एक युवा लड़का एर्नेस्तो "Fuser" Guevara डाक्टरी की पढाई पुरा होने के पहले, अपने दोस्त अल्बेरतो(Alberto) के साथ एक साहसिक पर मज़ेदार ८००० मील की महाद्विपिये यात्रा पर निकलता है. इस यात्रा का उद्देश्य है -अर्जेंटीना से चिलीहोते हुए, जीवन समझते हुए कोडियों की बस्ती (पेरू) में कुछ समय काम करते हुए वेनेजुएला पहुँचा जाए. यात्रा का माध्यम है - १९३९ की खटारा Norton मोटरसायकिल. यात्रा कठिन है और जोखिम भरा है. पहले दक्षिण की तरफ़ से ऐंडिस पार करते हुए चिली के समुद्री तट पर सफर करते हुए, चिली का मरुस्थल (नाम याद नही है!) पार करके पेरू पहुँचा जाए. फ़िर वहाँ से अल्बेरतो के जन्मदिन पर वेनेजुएला पहुँच जाया जाए. पर खटारा तो खटारा होती है - कई बार ख़राब होते होते - टूट के बिखर जाती है और यात्रा मोटरसायकिल के बजाय पाँव पर पूरी की जाती है और जुलाई महीने में ही वेनेजुएला पहुँच पाते हैं.
इस फ़िल्म का डायरेक्शन, कैमरा लोकेशन अदभुत हैं. प्लोट थोड़ा कमज़ोर लगा पर वो समझ में आता है क्यूंकि चे या एर्नेस्तो ने अपनी डायरी फ़िल्म की कथा के लिए नहीं लिखी थी. न ही किसी क्रिएटिव ने इसके साथ छेड़-छड़ मचाई है. संगीत भी काफी नया है - कम से कम मेरे लिए शायद लोक संगीत है ?
यह फ़िल्म कुछ कुछ धारावाहिक के किस्म की है, चे और एर्नेस्तो के डायरी के पन्नों और उनके घर लिखे पत्रों में चित्रित वर्णन और विक्सित हो रही राजनितिक सोच की वज़ह से. इस फ़िल्म को देखने या इस फ़िल्म को साम्हने या अच्छा लगने के लिए आपको चे या उसकी विचारधारा को जानना या संबध होना जरूरी नही है. इस फ़िल्म का अपने आप में दो दोस्तों के खुले सड़क और जीवन के आनंद और अनुभव की कहानी है. अगर आप चे की टी-शर्ट पहनते हैं या किसी को पहना देखते हैं और सोचते हैं ये कौन है.... या कौन था यह चे बनने के पहले तो यह फ़िल्म आपके लिए जरूर है. कम से कम मैंने तो बहुत एन्जॉय किया. दक्षिण अमेरिका के बारे में में सोच बढी... जिज्ञाषा बढी. एक और सवाल छोड़ जाती - युवा इतना आदर्शवादी क्यों होता है.... और उसके आदर्शवाद में ह्रास क्यों होता जाता है.. सोच समझ बढने के साथ साथ. फ़िल्म का टैग लाइन भी खूब है - “Let the world change you... and you can change the world”.

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