Thursday 7 February 2008

जिंदगी रेस है..!

अभी अभी एक दोस्त(कॉलेज के दिनों के) से बात हो रही थी. बस बात होने लगी... पीयूष ये कर रहा है... मानव वहाँ अमेरिका में है... अंशुल की शादी ठीक हो गई... ब्रज के घर ले लिया...मुझे पूछा गया ... तुमने क्या किया... शादी किए?, - हाँ. घर लिए? - ना. भाई जिंदगी रेस है... कितनों से पीछे रह गए.... थोड़ा तेज चलो... कब तक स्लो मोसन में ही रहोगे.... ट्वेन्टी ट्वेन्टी के ज़माने में टेस्ट मैच में लगे हुए हो...बात खत्म हुई... फ़ोन रखा ... तब से सोच रहा था... क्या किया.. अभी तक... थोडी ग्लानी हुई.... फ़िर सोचा... छोडो जो नही किया क्या सोचा जाए... क्या करें ये सोचा जाए तो बेहतर होगा.... इसी उधेड़बुन में लगा था... कैसे तेज़ चला जाए... दौड़ के भी कुछ उखाडा नहीं जा सकता है अब. सारी बुद्धि लगाई पर जबाब नहीं मिल पाया.... सोचा चलो ब्लॉग तो लिख दो... दर्द कम होगा... समय कट जाएगा... बात आई गई खत्म हो जायेगी.... जिनकी रेस है वो दौडें... हम तो जिंदगी के मजे ले रहे हैं... :)
वैसे ही हमारी ज़िंदगी - पिछली पीढ़ी के मुकाबले ज्यादा तेज़ हो गई है... मुझे याद है पापा अपनी पीढ़ी के हिसाब से ज्यादा देर तक काम करने वाले माने जाते थे... क्यूंकि ७ बजे तक घर पहुच पाते थे.. एक हम हैं... रात नौ बजे घर पहुँच गए तो गनीमत है.... पर नौ बजे पहुँच के अच्छा लगता है कि आज ऑफिस में रुकना नहीं पड़ा. पता नहीं पिछली बार किस दिन बिना अलार्म के उठा था. इस तेज़ रफ्तार जिंदगी से एकदम मिलाने के लिए... फास्ट फ़ूड के चक्कर में फंस जाना पड़ा है... पता नहीं कितने दिन हो जाते हैं - अगर वीकएंड में ऑफिस जाना पड़े तो एक दाल, भात, चटनी, चोखा, सब्जी वाला खाना खाए हुए. हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस से होते हुए... टाइम्स ऑफ़ इंडिया कि सनसनीखेज खबरों पर भी नज़र फिसलने कि फुरसत नहीं रहती है... लगता है थोड़ा ऑफिस के काम या किसी सोफ्त्वारे कोड के बरे में सोच लिया जाए पड़ लिया जाए तो बेहतर होगा.... कहानिया तो छोड़ ही दीजिये... न्यूज़ भी कहानियाँ हो गई हैं... खाने, पढने कि बात तो छोड़ दीजिये.... शादियाँ भी फास्ट तरीके से इंटरनेट और चैट से फिक्स से होने लगी हैं.... कुछ साल पहले फिनलैंड में ek तेलगु सहकर्मी से मिला था .... मालूम पड़ा कि मंगनी कि रस्म वेब कैम पर सम्प्पन हुई थी... दो साल के बच्चे को प्ले स्कूल में ठेलने लगते हैं.... पता नहीं कब ऐसे रेस में हम दौड़ते रहेंगे.... और कब तक - छोटी छोटी तुच्छ दिखाने वाली परन्तु अनमोल और विस्तृत जीवन को रेस कि भेट चढ़ाते रहेंगे. शायद, कुछ दिनों में जिंदगी में अनुभव करना ही भूल जायें.

1 comment:

Unknown said...

race ki to baat bhai aisi hai ki aap daude to race mein ho warna kiski race kaisi race...
jab jannte hain ki bekkar ki thakkan hogi aur milega kuch nahi; daal bhat chokha chatni se bhi haath dhona padega to phir daudein hi kyon?
Chahiye hi kya khush rehne ke liye agar dikhawa (ya keh lein competition) na ho..
Zindagi to jee bhar ke jee li jaaye to bahot hai. Braj ka ghar ya piyush ki gaadi se humein kya. hum to khush hain
aap bhi to khush hain ek achcha beta ban ke, ek pyara bhai ban ke, ek pyaar karne wala pati ban ke. Wiase, hum samajh sakte hain ki yeh sab ban ne ke liye kitni race lagani padti ha.
Lekin race nahi apni pace pe chalte rahiye, sara jahan aapka hi hai.