Tuesday 6 May 2008
एक था (है?) कार्ल मार्क्स ...!
कल यानि ५ मई को कार्ल मार्क्स की १९०वी सालगिरह थी. कम्युनिस्ट मनिफेस्तो जो १८४८ में प्मर्क्स ने लिखा था, उस में कहा गया है कि कैपितालिस्म (पूंजीवाद) के फैलाव के बरे में १५० साल बाद ही सही से मालूम पड़ेगा. इस परिपेक्ष्य में कार्ल मार्क्स और उनकी कृतियाँ - दास कैपिटल, कम्युनिस्ट मनिफेस्तो कुछ निराली चीज़ें हो जाती है. सबसे अच्छी बात यह है कि मार्क्स कि पूंजीवाद पर पकड़ - उसके बार बार संकट से गुजरने कि बात. आज के दौर में जब फ़िर से ग्लोबल डिप्रेशन, फ़ूड क्रैसिस कि बात हो रही है. तब तो मार्क्स कि प्रासंगिगता थोडी और बढ जाती है.मार्क्स कि बातों में जिन बातों कि अनदेखी हो गई है उनमें से एक है मिडिल क्लास. यह वह वर्ग है जो कभी शोषित और शोषक के बीच दीवार बन जाता है. या ख़ुद शोषित और शोषक बनता रहता है. हर किसीके लिए कार्ल मार्क्स के अपने मायने होंगे याद करने या नहीं करने के लिए. पर मैं उन्हें याद रखना चाहूँगा. एक पूंजीवाद के आलोचक के रूप में. अगर फ़िर से हम मार्क्स कि उक्तिया या सुक्तिया पढें तो हमारे आज के बारें में कहती हैं. तो शायद उन्ही पन्नों में आज कि समस्यायों का हाल भी होगा... पूंजीवादी तरीके से...
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