Tuesday 6 May 2008

वाईमर (weimar) - १८वी सदी का जर्मन शहर

वायमर जर्मनी में एक छोटा और सांस्कृतिक शहर है। फ्रैंकफर्ट और बर्लिन से लगभग तीन घंटे में पहुँचा जा सकता है। जर्मन इतिहास और संस्कृति में इस १००० साल पुराने शहर का सर्वोच्च स्थान है. समूचा जर्मनी आपको कहीं न कहीं से नया लगेगा और साडी इमारतें दुसरे विश्व युद्ध के बाद की बनी दिखेंगी. पर, वायमर को दूसरे विश्व युद्ध की त्रासदी कम ही झेलनी पड़ी. वायमर के मुख्य वाशिंदों में Bach, Goethe, Schiller, Lizst जैसों का नाम शुमार है.
पर 1919 में पहले विश्व युद्ध के बाद इसी वायमर में वायमर गणराज्य (Weimar Republic ) और जर्मनी में लोकतंत्र की नींव पड़ी. उसके बाद का समय वायमर के दुखी समय का है. वायमर गणराज्य का पतन, हिटलर का उत्थान और फ़िर दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत आर्मी का आगमन. जर्मनी के एकीकरण के बाद से वायमर में फ़िर से रंग लौट के आया है. फ़िर से यहाँ के पार्कों में और काफ़ी हॉउस में कलाकारों और बुद्धिजीवियों की भीड़ देखी जा सकती है.


शिल्लर और गोथे की प्रतिमा

गोथे का गार्डन हॉउस पार्क ऍम देर इल्म (Park am der Ilm)

पार्क ऍम देर इल्म (Park am der Ilm) - इसी पार्क में गोथे का गार्डन हॉउस है और इल्म नदी इस पार्क से हो कर बहती है.





पार्क ऍम देर इल्म (Park am der Ilm) - इसी पार्क में गोथे का गार्डन हॉउस है और इल्म नदी इस पार्क से हो कर बहती है.









शेक्सपियर की प्रतिमा पार्क ऍम देर इल्म में... (मुझे पूछने पर पता नहीं चला की इनके पाँव के निचे खोपडी क्यों पड़ी है.

होटल एलेफैंत की एक बालकनी (इसी बालकनी पर हिटलर खड़ा हो के लोगों को संबोधित करता था)




वायमर का माल - अत्रियम । मॉल में भी कला दिख जाती है।









दूसरे विश्व युद्ध के सोवियत सिपाहियों की सिमेट्री । हर पत्थर पर ६ नाम हैं। तीन एक तरफ़ ३ दूसरी तरफ़। इस स्थल के गेट पर का कुंडा हसिया-हथोड़ा की सकल का बना हुआ है। तस्वीर नहीं लगा पा रहा हूँ.








ग्राफिती - स्ट्रीट आर्ट।










4 comments:

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया जानकारी और बढ़िया चित्रों की प्रस्तुति सराहनीय है

राज भाटिय़ा said...

निशान्त भाई आप कहा पहुच गये ? इस तरफ़ तो नाजी बहुत रहते हे, अगर वहां रहते हो तो सम्भल कर. यह शहर ईस्ट जर्मनी मे पडता हे.
वेसे आप ने चित्र अच्छा खीचा हे जर्मनी का, धन्यवाद

निशान्त said...

@राज भाई,
मैं जर्मनी में नही रहता हूँ. बस घूमने के लिए गया था. मुझे भी ऐसा ही लगा था की ईस्ट जर्मनी है और पता नही कैसे लोग होंगे इत्यादि.. पर लोग थिक थक मिलें.. कोई नाजियों वाली बात नही देखने को मिली.. सरे लोग एंटी-नाजी ही मिलें मैं ही थोड़ा प्रो-हिटलर लगा :).

L.Goswami said...

achchhe aur manmohak chitra..