Friday 10 August 2007

बाढ, मिडिया और उसकी उदासीनता

हम कन्फ्यूज्ड हैं कि जो देखे पढें वो गलत था या जैसा बाकी कहते हैं कि बुध्दिजीवी की तरह चिरंतन रूदन सुना रहे हैं -- जब कन्फ्यूज्ड ही हैं तो कह दें। चलो कम से कम कैसे भी कैसे भी करके हम बुध्दिजीवी हो लिए।भूमिका में बिना पडे बस अपनी बात कह देने की कोशिश कर रहा - पिछले साल की बात है - मुम्बई में बाढ आयी थी, फिर आयी गुजरात और राजस्थान में, इस बीच हर साल की तरह असाम और बिहार में। मुम्बई की २४ घंटे की बाढ को सब ने टीवी पर देखा, अखबारों में पढा। पर् उत्तरी भारत में आयी बाढ का जिक्र भर आया खबरों में। पर इस साल कई जगह बाढ आयी - इग्लैंड, बिहार, असाम बंग्लादेश, जर्मनी और पूर्वी यूरोपीये देशों में। इन सब का भी हर बार की तरह इस बार भी जिक्र ही आया। उत्तरी भारत में आयी बाढ का जिक्र भी शायद इसलिए आया की दिल्ली के पत्रकारों को राजमाता गांधी की हवाई जहाज में लिफ्ट मिल गई। कुछ बाईट का जुगाड हुआ और राजमाता के साथ भी हो लिए। शायद उत्तरी भारत की बाढ का असर हमारे मिडिया के हिसाब से किसी पर अच्छा या बूरा नहीं पड्ता।

क्या फर्क पड्ता हैं, बिहार या असाम में आयी बाढ से - न सेन्सेक्स गिरता हैं, न बम फूटता है - न ही कोई मसाला हैं। पहले कहीं सुना था, बाद में पढा भी कि मिडिया का लोकतंत्र में क्या स्थान है। पर जब भी कभी खोजा तो पाया कि जो लोग हमारे यहाँ से मिडिया में गये और जो संसद में गये वो परिस्कृत हो गये। जैसे जैसे उनका कद उंचा और आवाज़ बुलंद होती गयी, सरोकार कम से कमतर होता गया। और मिडिया आवाज़ न हो के मनोरंजन बन के रह गया है।
हमारे पत्राकार (विशेषकर टीवी वाले) पूछते हैं - उनके पास मॉडल क्या है? राखी सावंत, जह्नवी कपूर सरीखे न्यूज के मॉडल क्या है? इनके के लिये तो मॉडल आपने कहाँ से तलाशे अगर आप्को मॉडल चाहिये तो मॉडल है - बीबीसी, डीडब्लू टीवी जैसे अंतरराष्टीय न्यूज चैनल। जो मनोंरजन भी परोसते, सनसनी भी और समवेदना भी ... बस आपको कुछ सीखना है या नहीं। और, सीखना हैं तो क्या?

1 comment:

Unknown said...

A BIG issue is put simply.. and that simplicity is touching..
The punch of simplicity is not easy to do away with.
The whole world is governed by the marketing strategies today and the media is not an exception and this causes the lack of sensitivity.
Flood in Assam and Bihar is just another story. Who bothers about what happens in Bihar and Assam, when Shahrukh's Chak De is just released and there is no dearth of news from America..
North India, after all, keeps having some or the other problems. Who cares about aliens.. They are habituated of sufferings, nothing new, no NEWS.
Monica, a Journalist