Tuesday 4 December 2007

आजकल दुबे जी भी लैट्रीन साफ करते हैं ....!

चिट्ठाजगत>चिट्ठाजगत>चिट्ठाजगत>चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी" href="
http://mohalla.blogspot.com/2007/12/blog-post_04.html कि आजकल दुबे जी भी लैट॒रीन साफ करते हैं. अरे भाई दुबे जी अब लैट्रीन भी साफ करते हैं तो नागवार गुजरता है इन साहबों को. अब देखिये, दुबे जी लैट्रीन साफ नहीं करेंगे मुम्बई, दिल्ली जा के तो क्या बेतिया, मोतिहारी के पास किसी गाँव में पेट कि आग में जल के मर जायें अपने बीवी बच्चों के साथ. जब ये ही सारे intellectuals जब विदेश यात्रा पर जाते हैं तो "डिग्निटी ऑफ़ लेबर" का बखान करते नहीं थकते हैं. ऐसा पश्चिम के देशों में इस लिए हैं क्योंकि यहाँ आत्मसम्मान से ज्यादा भूख बुझाने कि जद्दो जहद कि महता है. डिग्निटी ऑफ़ लेबर का एक और कारण है कि पश्चिम में सीमित कर्मी हैं और कार्य जगत में असीम संभावनाएं. पासवान जी का बेटा हीरो बन के आता है तब तो ये बात नहीं होती होती है कि वर्ण व्यवस्था को तोड़ने कि कड़ी में यह एक बहुत बड़ा कदम है. पर दुबे जी का लैट्रीन साफ करना वर्ण व्यवस्था पर ज्यादा चोट दे देता है. दुबे जी के जनेऊ पहने हुए रहने पर भी दो-चार बातें कर दी गईं. पर इस पर बात नही हो सकी कि कितने अगडों ने जनेऊ छोड़ रखा है. कितने राम, पासवान और दलित इसी वर्ण व्यवस्था को तोड के उच्चे पदों पर पहुँच रहे हैं. शायद, हमारा समाज अपने सुख से ज्यादा सुखी नहीं होता है. बल्कि पड़ोसी के दुःख में अपने को ज्यादा सुखी मह्सूह करता है. हम को यह खोजने कि दरकार है दलित भाई बंधू जो आज इस वर्ण व्यवस्था को चेतावनी देते आए हैं और कल तोड़ देंगे - उसके कारक क्या हैं. दुबे जी, झा जी, पांडे जी और ऐसे कितने ही जी को उन पासवान जी बनने कि ललक जब समाज में आएगी तब ही जा के वर्ण व्यवस्था टूटेगी.

2 comments:

भुवन भास्कर said...

मोहल्ला में आपकी टिप्पणी पढ़ी। अच्छी लगी, इसीलिए आपके ब्लॉग पर भी आ गया। जाति व्यवस्था और भारत की सामाजिक संरचना में इसके स्थान पर जो भी बहस होती है, उसमें अध्ययन और चिंतन का अभाव होता है और केवल अपनी मौजूदा जातिगत स्थिति की भड़ास ही होती है। मुझे लगता है कि ये मसला बहुत गहन अध्ययन और चिंतन खोजता है।

Unknown said...

dear nishant ji,
aapne bade kam shabdon mein badi gehri baat keh di hai. gehan adhyayan aur chintan ka masla to hai aur ek din mein badli jane wali vyavastha bhi nahi hai. Lekin chaliye yeh masla utha to sahi.. kam se kam kuch log to samjein dignity of labour ko sahi maayno mein..
dhanyawad.
---monica